घरमहाराष्ट्रक्या करे क्या ना करे...

क्या करे क्या ना करे…

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सकाळी सकाळी मुन्ना चाळीतल्या पक्याच्या खोलीवर…बोले तो पक्या भाय…वो मिली है ना. (पक्या तंबाखूची मशेरी लावत, एका हातात तांब्या, लांबपर्यंत चूळ सोडून ) उसका क्या ? अरे उसने इस मुन्नाका ‘हात’ हमेशाके लिए छोडा, पक्या- कायकू…वो बोल्ती मुन्ना मेरी बात सुनता नै…हमेशा गलीमें लफडा करताय, अरे तो उसको बोलनेका ना? तेरे दिल की बात…नै रे तू समजताईच नै…मै उसके लिए क्या नै किया…मिनर्व्हा में रंगिला दिखाया, दादर के फन फेअर में कुल्फी खिलाया…तभी मै उसको बोला भी, आपुन के दिल में तेरे लिए बहुत इज्जत है…पक्या- अरे इज्जत उसके पास भरी पडैली है..तू प्यार मोहब्बत की बात किया कै नै…मुन्ना- किया ना…मै गाना भी गाया…हमसे तूम दोस्ती करलो, ये हँसी गलती करलो…लेकीन अभी वो बोलती तेरेसे दोस्ती करके गलतीच कि मै…जब उसने मेरा ‘हात’ हात में लिया तो मैं गाने में उसको बोल डाला…पक्या -क्या बोला? मुन्ना- आयय्यो.. ओ.. मंगता है क्या वो बोलो..तो बोली मेरा इक सपना है…देखू मुझे संसद में..फीर और बोली, उत्तर मुंबईचं खासदारकीचं तिकिटं हवं, मेरा बिएष्टीके बसके टिकटका वांदा था, लेकीन मैं उसको ‘हात’वाले हायकमांडसे बोलके वो खासदारकीका तिकिटभी दिलवा दिया, लेकीन अभी बोलती, तेरा हात छोडनकू मंगता…तेरे हातवालोंमे मेरी बात कोई सुनताईच नै,

(मुन्ना आता गाणं म्हणतो) तू मेरे साथ भी है…तू मेरे पास भी है…फिर भी तेरा इंतजार है, अब इस राजनितीके ‘दौड’ में मेरा क्या होगा पक्या…? छोड दे मुन्नाभाय…कायको टेन्शन लेता तू अपनी ‘कंपनी‘ में और भी कोई होगा तो उसको ढूंढ लेंगे..हा यार, मैं उसको ‘मासूम’ समझा, लेकीन इस घोर ‘कलियुग’ में उसने मेरे दिल पर ‘डकैती’ की, मेरा हाथ उसको ‘श्रीमान आशिक’ समझ बैठा, मेरी ‘भावना’ को तहस नहस कर दिया. काश कोई ‘चमत्कार’ हो, ‘जानम समझा करो’, यार ये कैसी ‘जुदाई’ है… इस ‘अफलातून’ ‘दौड’ मैं शायद इस ‘दिवाने’ को बस ‘ओम जय जगदीश’काही सहारा है..अब मै ‘कौन’ हूँ उसके लिए? पक्या- ‘बडे घर की बेटी’ है वो मुन्ना और तू रास्ते का ‘छोटा चेतन’, अभी उसको जाके बोल ‘हम तुमपे मरते है’…मुन्ना- नही पक्या यार ‘यह दिल्लगी’ अपने को ‘कुवाँरा’ही मारेगी…लेकीन मरने के बाद भी ‘भूत’ बनकर ये मुन्ना उसके घरके सामने तबभी खडा रहकर आवाज देगा…क्या मिली कैसी है…ये ‘दिवानगी’ अपने को ‘जंगली’ बनाकरही छोडेगी..‘आग’ लागो त्या राज कारणाला…अखेर पक्या मराठी माणूस अस्सल मराठीपणावर उतरला..मग उद्विग्न झालेले पक्या आणि मुन्ना गाणं म्हणू लागले…क्या करे क्या ना करे ये कैसी मुश्कील हाय…आता पक्याचं तोंड बुचकळून झालेलं असतं आणि दोघंही मिलीच्या घराखाली टवाळक्या करायला मोकळे झालेले असतात….

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